Tuesday, April 28, 2020



ज़र से की इबादत तो कोई ज़ामिन ना हुआ। 
इबारत से की इबादततो कोई ज़ाकिर ना हुआ। 
बेसबब इबादत का हिसाब ना देना दोस्तों
इश्क़ की इबादत से ही ज़ाहिर ख़ुदा हुआ। 

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ज़रसोना 
ज़ामिनधर्मपिता
इबारतबोलीरचना
ज़ाकिरभगवान की प्रशंसा की कविता

दिन अब गुजर गयारात फिर भी बाक़ी है। 
नया तो अब कुछ नहींपर शुरुआत अभी बाक़ी है। 
साथ चलते एक दौर हुआठहराव अभी बाक़ी है। 
प्यार एक दस्तूर बन गयापर इख़्लास अभी बाक़ी है। 

इख़्लाससच्चा और निष्कपट प्रेम

Thursday, March 19, 2020


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कुछ गुनगुने से दिल की दस्तक है तो आज माथे पे ज़ुल्फ़ें संवार कर निकल। 
हाथों में चूड़ी और होठों पर लाली, आईने को दो बार चूम कर निकल। 
सुरमई नैनों में दो-चार को गिरफ़्तार होने की इजाज़त दे दे,
ज़माने को भूल कर, ख़ुद पर ऐतबार कर निकल। 
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सूरज को बंद कर के मुट्ठी में, मैंने चमकना सीख लिया है,
तपिश से सिहरन होती तो बहुत थी, पर मैंने चहकना सीख लिया है। 
वो जो समझाते थे ज़माने का दस्तूर मुझे, आज परदे में क़ैद हैं, 
पर्दानशीं ने आज दस्तूर बदलना सीख़ लिया है। 
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झरोखों से आगे, आसमान और भी हैं...  
इस दर के आगे राहें और भी हैं। 
टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडियों से डर न जाना हमसफ़र मेरे ... 
चौरस्तों के आगे, मुक़ाम और भी हैं। 

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कुछ हम ने ना कहा, और तुम सुन लो।
कुछ तुम ने ना कहा, और हम महसूस करें...
कुछ ऐसी ही छोटी ख्वाहिशों का नाम है ज़िन्दगी ,
ना तुम कहो, न हम कहें...  

साँस लेते ख़्वाब...

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ख़्वाबों को साँस लेने दो,
पलकों से निकलकर ज़िन्दगी की पनाह लेने दो।
पासबाँ मुन्तज़िर है आज भी कहीं ,
बस जुस्तजुओं को हर्फ़ों में तब्दील होने दो।


*पासबाँ  = Saviour , मुन्तज़िर = someone awaiting ,  हर्फों = letters (words), जुस्तजू = Wishes