From the pen of the Kamthan khandan's Chirags :)
A family that writes together...stays together :)
Thursday, March 19, 2020
सूरज को बंद कर के मुट्ठी में, मैंने चमकना सीख लिया है, तपिश से सिहरन होती तो बहुत थी, पर मैंने चहकना सीख लिया है। वो जो समझाते थे ज़माने का दस्तूर मुझे, आज परदे में क़ैद हैं, पर्दानशीं ने आज दस्तूर बदलना सीख़ लिया है।
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