Tuesday, April 28, 2020



ज़र से की इबादत तो कोई ज़ामिन ना हुआ। 
इबारत से की इबादततो कोई ज़ाकिर ना हुआ। 
बेसबब इबादत का हिसाब ना देना दोस्तों
इश्क़ की इबादत से ही ज़ाहिर ख़ुदा हुआ। 

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ज़रसोना 
ज़ामिनधर्मपिता
इबारतबोलीरचना
ज़ाकिरभगवान की प्रशंसा की कविता

दिन अब गुजर गयारात फिर भी बाक़ी है। 
नया तो अब कुछ नहींपर शुरुआत अभी बाक़ी है। 
साथ चलते एक दौर हुआठहराव अभी बाक़ी है। 
प्यार एक दस्तूर बन गयापर इख़्लास अभी बाक़ी है। 

इख़्लाससच्चा और निष्कपट प्रेम