O My Pen!!!
From the pen of the Kamthan khandan's Chirags :) A family that writes together...stays together :)
Tuesday, April 28, 2020
ज़र
से
की
इबादत
,
तो
कोई
ज़ामिन
ना
हुआ।
इबारत
से
की
इबादत
,
तो
कोई
ज़ाकिर
ना
हुआ।
बेसबब
इबादत
का
हिसाब
ना
देना
दोस्तों
,
इश्क़
की
इबादत
से
ही
ज़ाहिर
ख़ुदा
हुआ।
**
ज़र
-
सोना
ज़ामिन
-
धर्मपिता
इबारत
-
बोली
,
रचना
ज़ाकिर
-
भगवान
की
प्रशंसा
की
कविता
दिन
अब
गुजर
गया
,
रात
फिर
भी
बाक़ी
है।
नया
तो
अब
कुछ
नहीं
,
पर
शुरुआत
अभी
बाक़ी
है।
साथ
चलते
एक
दौर
हुआ
,
ठहराव
अभी
बाक़ी
है।
प्यार
एक
दस्तूर
बन
गया
,
पर
इख़्लास
अभी
बाक़ी
है।
इख़्लास
-
सच्चा
और
निष्कपट
प्रेम
Newer Posts
Older Posts
Home
Subscribe to:
Posts (Atom)